आओ हम ज़िंदगी की बात करें
गम की छोड़ें खुशी की बात करें
मौत बर हक है आएगी इक दिन
कल का क्या है अभी की बात करें.
मुझ पे वो जाँ-निसार करता है
कोई इतना भी प्यार करता है
दिल ने महसूस कर लिया उसको
वो मेरा इन्तिज़ार करता है.
अपने होंठों पे ये दुआ रक्खूँ
दिल में तेरी ही बस वफ़ा रक्खूँ
मेरे जीने की हर वजह तू है
कैसे खुद से तुझे जुदा रक्खूँ
तुमने फूँके हैं आशियाँ कितने
हमको मालूम है कहाँ कितने
बागवानों से पूछते रहिये
और जलने हैं गुलसिताँ कितने.
थी जो हिन्दोस्ताँ की जाँ उर्दू
रह गई बन के दास्ताँ उर्दू
जाने कब से सुलग रही है यहाँ
बनके उड़ने लगी धुआँ उर्दू.
-श्री बुनियाद हुसैन ज़हीन बीकानेरी के असरे-कलम से.
روشن ہے میری دنیا تری شانے رحمت سے بنا مانگے دیا سب کچھ نہیں ہے شکوا کسمت سے ربائی اور مکٹک ملینگے، کٹات بھی سنگ ملینگے بہتر پڑھائی کے شعور اور اور لکھنے کے ڈھنگ ملینگے. تو نہ ہو مایوس کے تجھکو چنندہ سورہ کے خوبصورت اشعارورنگ ملینگے मेरी कोशिश रहेगी कि इस ब्लॉग के जरिये मैं आपकी नज़र कुछ ऎसी शेरो-शायरी पेश करूं जो पढ़ने में आसान होने के साथ-साथ दिल को सकून भी दे. इस ब्लॉग की रचनाएँ देवनागरी लिपि में पढने के लिए कृपया अपनी बोली डॉट ब्लोगस्पोट डॉट कोम पर क्लिक करें.
Thursday, August 23, 2012
Tuesday, August 21, 2012
'दावत-ए-सुखन'
शुरुआत मैं अपनी एक रुबाई से कर रहा हूँ ... गालिबन आपको ज़रूर पसंद आएगी !
दीवाना हूँ, दीवाना हूँ, दीवाना हूँ
परवाना हूँ परवाना हूँ परवाना हूँ
ऐ शम्मे-वफा तेरे इश्क में डूबा इक
अनजाना हूँ, अनजाना हूँ, अनजाना हूँ
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