Thursday, August 23, 2012

चंद कत्आत्

आओ हम ज़िंदगी की बात करें
गम की छोड़ें खुशी की बात करें
मौत बर हक है आएगी इक दिन
कल का क्या है अभी की बात करें.

मुझ पे वो जाँ-निसार करता है
कोई इतना भी प्यार करता है
दिल ने महसूस कर लिया उसको
वो मेरा इन्तिज़ार करता है.

अपने होंठों पे ये दुआ रक्खूँ
दिल में तेरी ही बस वफ़ा रक्खूँ
मेरे जीने की हर वजह तू है
कैसे खुद से तुझे जुदा रक्खूँ

तुमने फूँके हैं आशियाँ कितने
हमको मालूम है कहाँ कितने
बागवानों से पूछते रहिये
और जलने हैं गुलसिताँ कितने.

थी जो हिन्दोस्ताँ की जाँ उर्दू
रह गई बन के दास्ताँ उर्दू
जाने कब से सुलग रही है यहाँ
बनके उड़ने लगी धुआँ उर्दू.
-श्री बुनियाद हुसैन ज़हीन बीकानेरी के असरे-कलम से.

Tuesday, August 21, 2012

'दावत-ए-सुखन'


शुरुआत मैं अपनी एक रुबाई से कर रहा हूँ ... गालिबन आपको ज़रूर पसंद आएगी !

दीवाना हूँ, दीवाना हूँ, दीवाना हूँ
परवाना हूँ परवाना हूँ परवाना हूँ
ऐ शम्मे-वफा तेरे इश्क में डूबा इक
अनजाना हूँ, अनजाना हूँ, अनजाना हूँ